हूल दिवस क्यों मनाया जाता है?
हूल दिवस झारखंड राज्य में हर साल 30 जून को संथाल आदिवासी क्रांति की याद में मनाया जाता है यह दिन उन वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देने का है जिन्होंने अंग्रेजों और जमींदारों शोषण के खिलाफ विद्रोह किया था |
संथाल विद्रोह।(हूल दिवस )
संथाल एक ऐसे ट्राइब थे जिन्होंने ब्रिटिशो को घोटने तेंकने में मजबूर कर दिया | वीरभूम ,मानभूम और बांकुड़ा के जमींदारों द्वारा सताए गए संथाल 1970 से ही संथाल परगना क्षेत्र जिसे दामिन ए कोह कहा जाता था में आकर बसने लगे । इन्हीं संथालो द्वारा किया गया यह विद्रोह झारखंड के इतिहास में सबसे अधिक चर्चित हुआ क्योंकि इसने कंपनी और उसके समर्थित जमींदारों सेवकों और अधिकारियों को बहुत बड़ी संख्या में जनहानि भी कृषि और वनों पर निभर थी लेकिन जमींदारों ने संथालियों को उनकी जमीन से ही बेदखल कर करना शुरू कर दिया ।
संथाल जीवन वेपन करने के लिए साहूकारों वा जमींदारों के शोषणचक्र मे फंस रहे थे ये लोग क्यों कि इतना ये लोग इतनी ऊंची ब्याज दर पर ऋण लगाते थे और फिर वसूली के नाम पर शारीरिक शोषण भी करते इसी करना से संथाल ने बंधुआ मजदूरी की प्रथा शुरू हुईं। बंधुआ मजदूर को कमियां भी कहा जाता था । न्याय व्यवस्था भी इन्हें संपन्न एवं समृद्ध शोषकों का साथ देती थी।
संथालो के सामने इस उत्पीड़न जल से बाहर निकलने का मार्ग न होने से ये लोग आत्महत्या कर रहे है थे। ऐसे विकट समय में संथाल लोग केवल इस शोषण से निकाने चाह रहे थे तभी दो नाव जवान इस अंग्रेजी शासन और जमींदारों के द्वारा शोषण के या जा रहा था उनका जाम कर विरोध के करते दो दो नाव जवान आए जिनका नाम सिद्धू कान्हू था इन दोनों के ने रात दिन एक करके संथालो में विद्रोह के का साहस भारा और उन्हें एकजुट होने के लिए सभी को प्रोत्साहित किया ।
संथाल विद्रोह में शामिल प्रमुख चेहरे।
- सिद्धू मुर्मू
- कान्हू मुर्मू
- चाँद भैरव
सन् 1855 में हजारों संथाल ने भोगनाडीह के चुनूं माँझी के चार पुत्र सिद्धू ,कान्हू, चाँद,और भैरव के नेतृत्व में एक सभी की जिसमें उन्होंने अपने उत्पीड़कों के विरुद्ध लामबंद लड़ाई लाने की शपथ ली। सिद्धू , कान्हू ने लोगों में एक नई ऊर्जा वा उत्साह भर दिया । उन्होंने एकजुट होकर अपनी भूमि से जिन्होंने ब्याज के नाम पर कब्जा किए थे उन्हें चले जाने की चेतावनी दी इन जमींदारों में अग्रेजों और उनके समर्थित कर्मचारी अधिक तथा जमींदारी आदि थे। संथाल की बात सरकारों को आज्ञा न मानने दामिन क्षेत्र में अपनी एक नई सरकार स्थापित करने और लगन न देने की घोषणा की गई। इसी बीच दरोगा महेशलाल दत्त को हत्या कर दी गई। चेतावनी देने के दो दिन बाद संथाल ने अपने शोषकों को चुन चुन कर मारना शुरू कर दिया।अम्बर के जमींदारों की हवेली जला दी गई ।
संथाल विद्रोह का नारा क्या था।
संथाल विद्रोह 1856 में वीरभूम, बांकुड़ा और हजारीबाग में भी फैल गई यह देख के कम्पनी चिंतित हो गई और बात चित से संथाल को समझने का का प्रयास किया जाने लगा लेकिन इनका धैर्य की सीमा पर करके उपजा संथाल का आक्रोश कुछ भी सुनने के लिए तेरा नहीं था संथाल तो अपने भूमि से अग्रेजों और उनके समर्थकों को भागने या समाप्त करने के सपात ले चुके थे । इनका नारा था “करो या मरो, अग्रेजों हमारी माटी छोड़ो।”
सिद्धू कान्हू के मृत्यु।
संथालो के हंगामे से अग्रेजों प्रशासन में हड़कप मच गई । कंपनी ने सेना को खुली छुट दे दी और इस विद्रोह को दबाने का आदेश दिया फिर अग्रेजों ने संथाल विद्रोह के नेताओं को रात दिन धरपकड़ करने लगे जिसमें सिद्धू, कान्हू पकड़े गए और जनवरी 1856 को उन्हें बरहेट में फंसी दे दी गई और फिर 1856 तक इस संथाल विद्रोह को दबा दिया गया
हूल दिवस का अर्थ।
इस संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप 30 नवंबर 1856 को विधिवत संथाल परगना जिला की अस्थाना की गई और प्रत्येक साल इस विद्रोह की याद में राज्य में हूल दिवस अर्थात् संथाल विप्लव दिवस 30 जून को मनाया जाने लगा।